कड़ाके की ठंड और नंगे बदन. आदिवासी काश्तकारी किसान और खेतिहर मजदूरों का जत्था हाथों में झंडे थामे पैदल चल रहे हैं. उनकी आंखों में रोष है. और जुबान पर नारेः चलो बिरसा के रास्ते, नई सुबह के वास्ते.
जमीन की सुरक्षा, मनरेगा में बकाया मजदूरी और आदिवासी किसानों की गिरफ्तारी जैसे सवालों पर सरकारी दफ्तर का दरवाजा खटखटाने के लिए 12 किलोमीटर पैदल चलकर घाघरा प्रखंड कार्यालय पहुंचे थे ये किसान.
गुरुवार को राजधानी रांची में सरकार राज्य के 22 हजार किसानों को मोबाइल फोन देने संबंधी निर्णय पर मंत्रिमंडल की मंजूरी देने की तैयारी में जुटी थी, उधर आदिवासी बहुल गुमला जिले के सलगी झाडूटोली के आदिवासी किसान और जोतदार खेतिहर मजदूर विरोध मार्च पर निकले हुए थे.
यह जगह झारखंड की राजधानी रांची से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर है.
आदिवासियों ने घाघरा प्रखंड मुख्यालय के सामने सभा की. और अफसरों को आगाह कराया कि उनकी आवाज सुनी जाए.
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सभा में किसानों ने ग्राम सलगी और पोड़ी में वैसी जमीन को काश्तकार किसानों के बीच बांटने की मांग रखी जिस पर वे सालों से जोत- कोड़ करते रहे हैं.
कामगार यूनियन से जुड़े सनिया उरांव का कहना है कि किसान बुधवा उरांव, बिहारी उरांव, गोविंद गोप एवम चुयू उरांव को जमीन से जुड़े मामले में गलत इलजाम लगाकर पुलिस ने गिरफ्तार किया है.
आदिवासियों का गुस्सा इस सवाल पर भी था घाघरा प्रखंड के नवडीहा पंचायत के वर्ष 2016-17 में मनरेगा मजदूरों के बकाये राशि का भुगतान अब तक नहीं की गई है. मनरेगा में खेतिहर मजदूरों को मुकम्मल तौर से काम भी नहीं मिल रहे. बकाए की मांग को लेकर मजदूरों ने पहले भी आवाज उठाई है. काश्तकारी किसान, खेतिहर मजदूरों की समस्या को आदिवासियों ने एक मांग पत्र भी प्रखंड मुख्यालय के अधिकारियों के नाम सौंपा है.
विरोध मार्च की अगुवाई कर रहे बिंझु उरांव बताते हैं कि रायडीह के परसा इलाके में गलत तरीके से आदिवासियों की जमीन बेच दी गई है . विरोध मार्च में शामिल लोगों ने अफसरशाही के विरोध में भी आवाज उठाई. उनका कहना था कि आम आदमी की आवाज सुनी नहीं जाती. उनका कहना था कि खेतिहर मजदूर, काश्तकार किसानों के हितों को लेकर कोई योजना कारगर नहीं दिखती.
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