झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों की घोषणा के साथ ही गठबंधन और उम्मीदवार को लेकर सत्ता-विपक्ष में माथापच्ची तेज है. कई किस्म की अटकलों का दौर जारी है. बीच- बीच में पाला बदल भी चल रहा है. जाहिर है विपक्ष के उन विधायकों पर भी नजरें टिकी है, जिन्होंने हाल ही में बीजेपी का दामन थामा है. बीजेपी में शामिल होने वाले विपक्ष के इन विधायकों को टिकट मिलना तय माना जा रहा है, लेकिन जीत की जंग बाकी है. दरअसल, ये विधानसभा चुनाव है और नतीजे बताते हैं कि बीजेपी में शामिल हो जाने से पसीने गुलाब नहीं होते.
नजरें उन छह विधायकों पर भी टिकी है, जो 2014 में जेवीएम में चुनाव जीतने के तुरंत बाद बीजेपी में शामिल हो गए थे. हालांकि बीजेपी में गए उनके पांच साल हो गए उन पर भगवा का रंग गहराया है.
पिछले महीने की 23 तारीख को कांग्रेस से लोहरदगा के विधायक सुखदेव भगत, बरही के विधायक मनोज यादव, मांडू से जेएमएम के विधायक जेपी पटेल, बहरागोड़ा से कुणाल षाड़ंगी और भवनाथपुर से नौजवान संघर्ष मोर्चा के विधायक भानू प्रताप शाही बीजेपी में शामिल हुए हैं.
जबकि पांच अक्तूबर को लातेहार से जेवीएम के विधायक प्रकाश राम बीजेपी में शामिल हुए हैं.
सुखदेव भगत और मनोज यादव कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार थे. जाहिर है झारखंड की चुनावी सियासत में इसे बड़ा उलटफेर माना गया.
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वैसे इसकी पटकथा लोकसभा चुनाव के वक्त से ही लिखी जा रही थी. अगर विपक्षी विधायक पाला बदलने के लिए उतावले थे, तो बीजेपी भी इसे रणनीतिक सफलता के तौर पर निपटाने में जुटी थी.
हालांकि जेपी पटेल, भानूप्रताप शाही बीजेपी के गलियारे में पहले से ही नजर आ रहे थे. अलबत्ता लोकसभा चुनाव में इन दोनों ने बीजेपी का प्रचार किया. और प्रकाश राम भी बीजेपी की राह तलाश रहे थे.
पाला बदल की कुछ और चर्चा से पहले पूछा जा सकता है कि बीजेपी में जाने से पसीने गुलाब क्यों नहीं होते.
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए 2014 के चुनाव नतीजे पर गौर किया जा सकता है. जबकि चुनाव के मौके पर बीजेपी में इन विधायकों के आने से पार्टी के अंदर ही मरमरिंग है.
पहले से भाजपा में टिकट के दावेदारों का बिदकने का भारी डर है. कई विपक्षी दलों के संपर्क में हैं. भितरघात का भी खतरा है. बरही से उमाशंकर अकेला, भवनाथपुर से अनंत प्रताप देव और मांडू से महेश सिंह को अब भी टिकट की आस है.
इधर बीजेपी में शामिल होने के बाद कई विधायकों को क्षेत्र में भाजपाई हाथों हाथ साथ दे रहे है, तो कई अब भी भगवा कार्यकर्ताओं का साथ पाने को बेकरार हैं.
हालांकि जो भी विधायक बीजेपी में गए है वो दमदार हैं और जीत के साथ पद का प्रोफाइल भी बड़ा रहा है. मसलन भानूप्रताप शाही, मनोज यादव जेपी पटेल मंत्री भी रहे हैं. जेएमएम से बगावत के बाद जेपी पटेल हेमंत सोरेन पर जब-तब निशाना साधते रहे हैं.
सुखदेव भगत कांग्रेस के प्रदेश अद्यक्ष रहे हैं. जाहिर है इन्हीं हैसियत को देखते हुए बीजेपी ने विपक्षी दलों को झटका दिया है. और इन पर जीत का भरोसा किया है.
लेकिन चुनावी राहें इतनी आसान होती नहीं दिखती और पानी का कई घाट से अभी बहना भी बाकी है.
हेमलाल मुर्मू और साइमन मरांडी
हेमलाल हेमलाल मुर्मू बहरेट से चार बार जेएमएम के विधायक रहे हैं और 2004 में जेएमएम के टिकट पर राजमहल संसदीय चुनाव चुनाव जीते. झारखंड में विपक्ष की सरकार में वे मंत्री भी रहे. एक दौर था जब उन्हें शिबू सोरेन का सिपहसलार माना जाता था.
2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जेएमएम छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने उन्हें राजमहल संसदीय सीट पर चुनाव लड़ाया, पर वे जेएमएम के विजय हांसदा से हार गए. इसके बाद 2014 में ही बरहेट से विधानसभा का चुनाव लड़े. और हेमंत सोरेन से हार गए.
2017 में कांग्रेस के विधायक डॉ अनिल मुर्मू के निधन के बाद लिट्टीपाड़ा का उपचुनाव हुआ. बीजेपी ने हेमलाल को लिट्टीपाड़ा में उतारा. लेकिन वे हार गए. इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर हेमलाल को राजमहल से लड़ाया. लेकिन जेएमएम के विजय हांसदा से हार गए.
इसी तरह 2014 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम के साइमन मरांडी बीजेपी में शामिल हो गए और अपनी परंपरागत सीट लिट्टीपाड़ा से चुनाव लड़े. लेकिन कांग्रेस के डॉ अनिल मुर्मू से हार गए.
2017 में डॉ अनिल मुर्मू के निधन के बाद लिट्टीपाड़ा का उपचुनाव हुआ. साइमम को लगा कि जेएमएम में वापसी का यही सही मौका है. वे शिबू सोरेन और हेंमत सोरेन से मिले. बताया कि बीजेपी में दिल लगता नहीं. वापस बुला लीजिए. शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन मान गए. साइमन मरांडी उपचुनाव जीत गए.
माधवलाल और लालचंद महतो
माधवलाल गोमिया से तीन बार चुनाव जीते हैं. 2014 के चुनाव से पहले माधवलाल सिंह बीजेपी में शामिल हुए. बीजेपी ने उन्हें गोमिया से चुनाव लड़ाया. बीजेपी को लगा कि माधवलाल के जरिए इस सीट पर कब्जा जमाया जा सकता है. लेकिन जेएमएम के योगेंद्र महतो ने माधवलाल को 37 हजार 394 वोटों से हराया.
2018 में योगेंद्र महतो के सजायाफ्ता होने के बाद उनकी विधायकी खत्म हो गई. गोमिया में उपचुनाव हुआ. इस बार माधवलाल बीजेपी से ही लड़े और तीसरे नंबर पर जा पहुंचे. योगेंद्र महतो की पत्नी बबीती देवी चुनाव जीत गईं. जबकि आजसू के लंबोदर महतो दूसरे नंबर पर रहे. अब माधवलाल ने निर्दलीय लड़ने का एलान किया है.
उधर 2014 के चुनाव के वक्त ही पूर्व मंत्री लालचंद महतो बीजेपी में शामिल हुए थे. बीजेपी ने उन्हें डुमरी से चुनाव लड़ाया. जेएमएम के जगरनाथ महतो ने लालचंद महतो को 32 हजार 481 वोटों के अंतर से हराया. हाल ही में लालचंद महतो अपने पुराने घर जदयू में लौट आए हैं. जदयू से उनका चुनाव लड़ना तय है.
अनंत प्रताप देव और चुन्ना सिंह
सारठ से तीन बार के विधायक रहे चुन्ना सिंह पिछले चुनाव के वक्त बीजेपी में शामिल हुए थे. बीजेपी ने उन्हें सारठ से चुनाव भी लड़ाया. लेकिन वे जेवीएम के रणधीर सिंह से हार गए. रणधीर सिंह चुनाव जीतने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए. अभी सरकार में मंत्री भी हैं. जबकि चुन्ना सिंह जेवीएम में शामिल हो गए हैं.
इसी तरह 2014 के चुनाव में कांग्रेस से टिकट मिलने के बाद भी अनंत प्रताप देव मौका ताड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने उन्हें भवनाथपुर से चुनाव लड़ाया. लेकिन भानुप्रताप शाही से अनंत चुनाव हार गए.
अब भानूप्रताप शाही बेजीपी में शामिल हो गए हैं. लिहाजा अनंत प्रताप देव का रुख क्या होगा, इसे देखा जा सकता है. बीजेपी भानू को ही चुनाव लड़ाएगी, इसकी संभावना भी प्रबल है.
जेबी तुबिद और नवमी उरांव
पूर्व आईएएस अधिकारी 2014 में ही बीजेपी में शामिल हुए थे. बीजेपी ने उन्हें चाईबासा से चुनाव लड़ाया. लेकिन जेब तुबिद की करारी हार हुई. जेएमएम के दीपक बिरूआ ने 34 हजार 715 वोटों से हराया और सीट पर कब्जा बरकरार रखी.
उधर जेएमएम के पूर्व विधायक सुखराम उरांव की पत्नी नवमी उरांव को बीजेपी ने चक्रधरपुर से चुनाव लड़ाया. लेकिन जेएमएम से वो हार गईं. अब सुखराम जेएमएम में लौट आए हैं. उधर कोलेबिरा में नक्सली रहे मनोज नागेशिया भी बीजेपी से चुनाव लड़कर हार गए.
दूसरे दलों में भी यह तस्वीर उभरी
हालांकि ठीक चुनाव के वक्त बीजेपी के अलावा दूसरे दलों में भी शामिल होने वाले होने वाले कई चेहरे को हार का सामना करना पड़ा. इनमें पूर्व मंत्री हरिनारायण राय, सत्यानंद भोक्ता, बंधु तिर्की का नाम मुख्य तौर पर शामिल है.
हरिनारायण राय जेएमएम के टिकट से जरमुंडी में चुनाव लड़े और कांग्रेस के बादल पत्रलेख से हार गए. सत्यानंद भोक्ता जेवीएम के टिकट से चतरा में चुनाव लड़े. बीजेपी से हार गए. अभी सत्यानंद भोक्ता राजद में हैं. बंधु तिर्की मांडर से तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए. बंधु तिर्की अब जेवीएम में हैं.
विधायकों की चुनौतियां कम नहीं
अब बात बीजेपी में शामिल होने वाले विधायकों के सामने चुनौतियों की. सुखदेव भगत अगर बीजेपी के उम्मीदवार बने, तो लोहरदगा में आजसू से दो- दो हाथ करना होगा. कमलकिशोर भगत ने सुखदेव भगत को 2009 और 2014 में चुनाव हराया है. 2015 में कमलकिशोर भगत के सजायाफ्ता होने के बाद उनकी विधायकी चली गई. उपचुनाव मे सुखदेव भगत जीत गए.
आजसू से कमलकिशोर भगत की पत्नी नीरू शांति का चुनाव लड़ना तय है. आजसू गठबंधन के तहत इस सीट पर अपना वाजिब हक मान कर चल रही है. 11 नवंबर को नीरू शांति का नामांकन भी है.
इससे पहले दो अक्तूबर को सजा पूरी कर जेल से निकले कमलकिशोर भगत अपनी पत्नी के लिए मैदान संभालने में जुटे हैं.
अब आजसू की नजर कांग्रेस के वोट बैंक पर है और बीजेपी के नेता-कार्यकर्ता सुखदेव भगत का कितना साथ देंगे इसे लेकर भाजपा के अंदरखाने सवाल उठने लगे हैं. अब तक सुखदेव भगत का साथ देने वाले अल्पसंख्यक वोटों की भूमिका भी बदली हुई दिखाई पड़ेगी.
कांग्रेस भी सुखदेव भगत से बदला लेना चाहेगी. संकेत मिल रहे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव को पार्टी मैदान में उतार सकती है. कांग्रेस के सांसद धीरज प्रसाद साहु भी सुखदेव भगत की हार तय करने में जुटे हैं. हाल ही में उन्होंने कहा भी है कि सुखदेव भगत ने सिर्फ अपना हित साधा है.
मांडू में जेपी पटेल से बदला लेने के लिए जेएमएम भी कोई दांव खाली नहीं जाने देना चाहता. जेपी पटेल को अपने पिता टेकलाल महतो की विरासत पर भरोसा है, तो जेपी पटेल के भाई रामप्रकाश पटेल जेएमएम से चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी कर रहे हैं.
जेपी पटेल के बीजेपी से चुनाव लड़ने पर बीजेपी के महेश सिंह और उनके समर्थकों की भूमिका क्या होगा इसे परखा जाना है. जयंत सिन्हा के बेहद करीबी महेश सिंह बीजेपी से चुनाव लड़ते रहे हैं और पिछले चुनाव में कांटे की टक्कर में हार गए थे.
आजसू से तिवारी महतो अलग ही चुनाव लड़ने के लिए उछाल मार रहे हैं. अगर तिवारी लड़े, तो कुरमी वोटों के बंटवारे से इंकार नहीं किया जा सकता. वैसे जेपी की जमीनी पैठ है और उन्हें उम्मीद है कि बीजेपी की नाव पर सवार आसानी से लहरों को काटा जा सकता है.
उधर कुणाल षाडंगी के लिए भी मैदान बहुत आसान नहीं दिख रहा है. कुणाल के बीजेपी में जाने के बाद बीजेपी से समीर मोहंती जेएमएम में आ गए हैं. समीर मोहंती समीकरणों को प्रभावित करेंगे, इससे इंकार नहीं किया जा रहा.
कुणाल के पक्ष में एक समीकरण यह जरूर बनता है कि उनके पिता डॉ दिनेश षाड़ंगी बीजेपी से विधायक रहे हैं. और झारखंड सरकार में वे मंत्री भी थे. सामाजिक तौर पर उनकी खासी प्रतिष्ठा रही है.
साथ ही रघुवर दास की रणनीति के तहत ही कुणाल बीजेपी में शामिल हुए हैं. बहरागोड़ा में जमशेदपुर के सांसद विद्युवरण की पैठ रही है. विद्युतवरण पार्टी के आदेश के तहत कुणाल की जीत सुनिश्चित करना चाहेंगे.
लोकसभा चुनाव में भी बहरागोड़ा से बीजेपी को रिकॉर्ड वोट मिल थे. लेकिन जेएमएम का तर्क है कि विधानसभा चुनाव में वह हवा नहीं बहेगी.
महंगा पड़ेगा पाला बदल
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय कहते हैं कि 2014 में विद्युतवरण के बीजेपी में जाने के बाद भी बहरागोड़ा सीट पर जेएमएम की जीत हुई थी. इस बार कुणाल षाड़ंगी गए हैं, लेकिन जीत जेएमएम की होगी. मांडू में भी जेपी पटेल की घेराबंदी की जाएगी. जीत जेएमएम की ही होगी. विनोद पांडेय कहते हैं कि जेएमएम ने जेपी पटेल को समय से पहले बहुत कुछ दे दिया. उसे वे संभाल नहीं पाए.
गौरतलब है कि बुधवार को हेमंत सोरेन ने भी मीडिया से बातचीत में कहा था कि जेएमएम राजनीति की नर्सरी है और एक- दो के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. जेएमएम के पास कई मजबूत और दमदार चेहरे हैं.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव कहते हैं कि लोहरदगा और बरही सीट कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की सीट होगी. हम मजबूती से लड़ेंगे. सुखदेव भगत और मनोज यादव को कांग्रेस ने बहुत दिया. और जब वे कांग्रेस के नहीं हुए, तो बीजेपी के क्या होंगे.
गौरतलब है कि बरही से तीन बार चुनाव जीते मनोज यादव के बीजेपी में शामिल होने से सबकी निगाहें अकेला यादव पर टिकी है. अकेला यादव 2009 में बीजेपी से चुनाव जीते थे. और 2014 में मनोज यादव से सीधा मुकाबला में 7085 वोटों से हार गए थे. अब उमाशंकर अकेला पर कांग्रेस और जेवीएम दोनों की नजर है, लेकिन अकेला ने पत्ते नहीं खोले हैं और उन्हें बीजेपी से ही टिकट का इंतजार है.
उधर 2014 में भवनाथपुर से भानूप्रताप शाही बीजेपी के उम्मीदवार अनंत प्रताप देव से महज 2661 वोटों से जीते थे. अनंत प्रताप देव अब किस भूमिका में होंगे, टिकट बंटवारे के साथ तस्वीर साफ होगी. वैसे भानू के पक्ष में एक बात राहत देती नजर आती है कि क्षेत्र में भाजपाइयों ने उन्हें गले लगा लिया है.
मन क्यों डोला
अब इन विधायकों का चुनाव की तारीखों के साथ बीजेपी में शामिल होने की नौबत क्यों आई, इसके लिए धागे निकालने की कोशिश करें, तो कुछ चीजें स्पष्ट होती दिखाई पड़ेंगी. नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर पर सवार बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में जब झारखंड में भी विपक्ष को झकझोर कर रख दिया, तो अपने क्षेत्र के समीकरणों को लेकर विपक्ष के कई बड़े नेताओं को भी डर सताने लगा.
उन्हें लगता है कि बीजेपी में बैकिंग है. वोटरों का रूझान है. नेताओं की फौज है. तेवर और तल्खियां हैं. तरकस में तिकड़म के तमाम तीर हैं. लिहाजा मोदी की लहर पर सवार होकर नैया पार लगाई जा सकती है.
हालांकि बीजेपी में शामिल होने के साथ ये विधायक कह चुके हैं कि राष्ट्रवाद और विकास जरूरी है. इसलिए बीजेपी के साथ हो चले हैं.
उधर लोकसभा चुनाव के वक्त अन्नपूर्णा देवी के बीजेपी में शामिल होने, कोडरमा से विजय पताका लहराने तथा गिरिडीह से बीजेपी के समर्थन से चंद्रप्रकाश चौधरी की शानदार जीत के बाद से कई विधायकों को यह लगने लगा है कि भगवा धारण करना ही विधानसभा, लोकसभा पहुंचने की गारंटी हो सकती है. लेकिन इस गारंटी की जंग बाकी है.
जाहिर है मनोज यादव और सुखदेव भगत जैसे कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी भविष्य की राजनीति के लिए नया ठौर तलाशना पड़ा. यह एकतरफा झुकाव नहीं था. बीजेपी के रणनीतिकार इसी बहाने एक तीर से दो शिकार कर लेना चाहते थे.
मन क्यों डोला इसके लिए सुखदेव भगत को केंद्र में रखते हुए समीकरणों पर गौर करें, तो लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ ही मौका ताड़ लिया था कि बीजेपी का दामन थाम लेना ही आगे की राजनीति के लिए अच्छा होगा. सुखदेव भगत को बीजेपी के सुदर्शन भगत ने लोहरदगा संसदीय सीट से 10 हजार 363 वोटों से हराया है.
सुदर्शन भगत ने कांग्रेस से सुखदेव भगत के कब्जे वाली लोहरदगा विधानसभा सीट पर ही11 हजार 121 वोटों की बढ़त बनाई. अगर अपनी सीट से सुखदेव भगत लीड ले पाते, तो तस्वीर कुछ और होती.
हालांकि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ मीडिया से कह चुके हैं कि बीजेपी की नीतियों और विकास आधारित राजनीति से प्रभावित होकर ये विपक्षी दलों के विधायक हमारे साथ आ रहे हैं. टिकट की कोई शर्त नहीं है और पार्टी जिन्हें भी चुनाव लड़ाएगी, उनकी जीत अवश्य होगी.
गिलुआ का ये भी कहना है, लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव का परिणाम आएगा. बीजेपी 65 प्लस का लक्ष्य आसानी से हासिल करेगी. पिछले चुनाव में कुछ लोग हार गए थे, तो इस बार तस्वीर वैसी नहीं रहेगी. पांच सालों में केंद्र और राज्य सरकार के काम ने जनता के बीच विश्वास बढ़ाया है.
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