झारखंड विकास मोर्चा से चुनाव जीतने वाले बाबूलाल मरांडी, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के दलबदल मामले में अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी.
दरअसल इस मामले में विधानसभा से मिले नोटिस को बाबूलाल मरांडी की तरफ से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.
सोमवार, 23 दिसंबर को बाबूलाल मरांडी की ओर से पक्ष रखते हुए वरीय अधिवक्ता आरएन सहाय ने स्पीकर को बताया कि दलबदल को लेकर मिले नोटिस को चुनौती दी गई है.
इसी बाबत हाइकोर्ट में 17 नवंबर को रिट पिटिशन दायर किया गया है. जब तक इस मामले में हाइकोर्ट में मामले की सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक मोहलत दी जाए.
इस पर स्पीकर रवींद्रनाथ महतो का कहना था कि केवल याचिका दायर कर देने से मामले की सुनवाई स्थगित नहीं की जा सकती है़ हाइकोर्ट का कोई आदेश आया हो, तो बताएं.
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इस पर बाबूलाल मरांडी के अधिवक्ता का कहना था कि याचिका दायर होने के बाद हाइकोर्ट में छुट्टी हो गई.
जबकि कोरोनाकाल में ऑनलाइन सुनवाई हो रही थी. थोड़ा वक्त लग जाता है. इसलिए छह हफ्ते की मोहलत दी जाए.
स्पीकर ने बाबूलाल के पैरवीकार से कहा है कि आपका अनुरोध मान्य नहीं कर सकता है़ कोई आदेश आता, तो विचार करता़ लेकिन बेहतर होगा कि आप पहले यहां अपना पक्ष रखे़ं.
उधर बंधु तिर्की और प्रदीप यादव के अधिवक्ता पक्ष रखने के लिए तैयार थे. लेकिन स्पीकर ने कहा कि मामला एक ही है. इसलिए अगली तिथि 19 दिसंबर तय की जाती है. तीनों उस तारीख को तैयार होकर आएं.
गौरतलब है कि बाबूलाल मरांडी ने झाविमो का बीजेपी में विलय कर लिया है. चुनाव आयोग ने इस विलय को मान्यता प्रदान कर दी है.
चुनाव आयोग के हस्तक्षेप पर बाबूलाल मरांडी ने राज्यसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार दीपक प्रकाश को वोट किया था.
बीजेपी ने पहले बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुन लिया है. नेता चुनने के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष से उन्हें नेता प्रतिपक्ष की मान्यता देने का आग्रह किया है. लेकिन अब तक उन्हे नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला है.
इसे लेकर भाजपा सरकार और विधानसभा पर कई मौके पर राजनीति करने का आरोप लगाती रही है.
इधर जेवीएम से चुनाव जीते प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. लेकिन उन्हें में कांग्रेस का विधायक नहीं माना गया है.
अब स्पीकर के कोर्ट में दलबदल का मामला शुरू किया गया है. इसी मामले में मिले नोटिस को बाबूलाल मरांडी की तरफ से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.
दरअसल इस नोटिस पर बाबूलाल को एतराज है. वे पहले से कहते रहे हैं कि उनके खिलाफ दलबदल का मामला नहीं बनता.
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सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद झाविमो का भाजपा में विलय हुआ है और इसे चुनाव आयोग ने भी सही माना है.
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